करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान-इस कहावत को आधार बनाकर विद्यार्थी जीवन में परिश्रम का महत्व बताते हुए निबंध लिखिए।
करत-करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान।
अर्थात् कुएँ से पानी खींचते समय रस्सी पत्थर पर गहरा निशान डाल देती है, इसलिए अभ्यास वह मूलमंत्र है, जिससे मूर्ख भी विद्वान बन जाता है और विद्वान और भी कुशल हो जाता है। अभ्यास और परिश्रम का मार्ग अपनाकर मनुष्य सफलता को सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है। अभ्यास मनुष्य के गुणों को विकसित करता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि अभ्यास और परिश्रम के बल पर मनुष्य ने असंभव को भी संभव कर दिखाया। अर्जुन तथा एकलव्य निरंतर अभ्यास और परिश्रम करने के कारण ही महान धनुर्धर बन सके। वाल्मीकि सतत् अभ्यास के कारण ही आदिकवि वाल्मीकि बने।
मुहम्मद गौरी ने सत्रह बार पराजित होकर भी हार नहीं मानी, इसलिए अठारहवीं बार पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर सका। हॉकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी ध्यानचंद अभ्यास के कारण ही हॉकी के जादूगर बन सके।
जो लोग अभ्यास से मुँह मोड़ते हैं, सफलता उनसे कोसों दूर रहती है। संस्कृत में एक कहावत है-.अनभ्यासे विष विद्या. अर्थात् अभ्यास के बिना विद्या विष के समान हो जाती है, इसलिए विद्यार्थी जीवन में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। जो विद्यार्थी आलस्य के कारण परिश्रम से मुँह मोड़ते हैं, वे अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते। जीवन के सभी क्षेत्रों में, चाहे वह खेल-कूद हो या पढ़ाई, संगीत हो या कला-कौशल अभ्यास करने पर ही निपुणता प्राप्त होती है। अभ्यास न केवल व्यक्ति, बल्कि पूरे समाज व देश के उत्थान का मूलमंत्र है। निरंतर अभ्यास से ही मनुष्य की मानसिक तथा आध्यात्मिक उन्नति संभव है, अतः हमें इससे अपने कदम पीछे नहीं हटाने चाहिए।
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान पर निबंध | Essay on Karat Karat Abhyas Jadmati Hot Sujan In hindi
उन्नति और सफलता का मूल-मंत्र अभ्यास है। सफलता के लिए किया गया परिश्रम अभ्यास से ही फलित होता है। एक बार किया हुआ श्रम मनवांछित फल नहीं देता; बार-बार के अभ्यास से ही फल-सिद्धि होती है। चाहे निर्माण कार्य हो, कला-कौशल को सीखना हो, किसी लक्ष्य तक पहुँचना हो अथवा विद्याध्ययन हो, सर्वत्र अभ्यास की आवश्यकता है। यहाँ तक कि प्रतिभावान व्यक्ति भी यदि अभ्यास न करे तो वह आगे नहीं बढ़ सकता।
किसी भी रचना में परिपक्वता अभ्यास से आती है। अभ्यास के बल पर एकलव्य प्रखर धनुर्धर; कालिदास, वाल्मीकि और तुलसीदास महाकवि; बोपदेव संस्कृत-प्राकृत के समर्थ वैयाकरण, अमिताभ बच्चन शती के महान ‘एक्टर’ और कपिलदेव शती के महान क्रिकेटर’ सिद्ध हुए। निरंतर अभ्यास जीवन में साधना का एक रूप है, जिसका सुख साधक को स्वतः मिलता है। किसी कवि का यह कथन बड़ा ही सार्थक है :
‘करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान॥’